Saturday, November 26, 2011

दिन ऐसे भी थे



हर दिन की शुरुआत होती है तुमसे
या बात से, या ख्याल से
या फिर दिल में उठते सवाल से
की तुम कैसी हो?




दिन ऐसे भी थे,
जिनकी शुरुआत का पता ही न चला 
ना ही बात से, ना ख्याल से,
ना ही अचनकी इक सवाल से
ना ही बंधन था, ना कोई गिला
ना ही प्यार, ना उसका सिला
तन्हाई सी इक ज़रूर थी
मेरी सुबहो में दुबकीहुई




दिन ऐसे भी थे ,
जो बस शुरू हुए
उन्हे वापिस जाते देखा नही
शायद दुनियादारी में उलझा रहा हुंगा
उस समय बिल्कुल समय नही था
बात का ना ख्याल का
जवाब का ना सवाल का
बस इक दौड़ थी और मैं प्रतिभागी
कुछ ऐसी भी थी जिंदगी.




आज,ये जो बात है  जो ख्याल है
ये जवाब और येसवाल है
मेरी सोच के हैं हम कदम
मेरी सुबहें इनसे बिलाल हैं 

Friday, November 25, 2011

पल


पल ,
निकल गया यह भी हाथ से
लड़ाई चलती ही रही
दुनियादारी की ज़ज्बात से
समय गर दे सकता गवाही
तो गवाह हर घड़ी होती
कोई भी तो नही गुजरा यहा से
जाग रहा हूँ मैं रात से
तोड़ पल की बेड़ियो को
पहुच पाऊँ किसी निष्कर्ष पर
चाहता हूँ मैं भी किंतु
विवश हूँ हालत से
जज्बातो की दुनिया अलग है
दुनिया के ज़ज्बात अलग
कितना कहूँ , कहता रहूं?
कोई तो बात निकले बात से