Friday, November 25, 2011

पल


पल ,
निकल गया यह भी हाथ से
लड़ाई चलती ही रही
दुनियादारी की ज़ज्बात से
समय गर दे सकता गवाही
तो गवाह हर घड़ी होती
कोई भी तो नही गुजरा यहा से
जाग रहा हूँ मैं रात से
तोड़ पल की बेड़ियो को
पहुच पाऊँ किसी निष्कर्ष पर
चाहता हूँ मैं भी किंतु
विवश हूँ हालत से
जज्बातो की दुनिया अलग है
दुनिया के ज़ज्बात अलग
कितना कहूँ , कहता रहूं?
कोई तो बात निकले बात से

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